Gantantra Ka Ganit(Hardcover, Hindi, Narendra Kohli)
Quick Overview
Product Price Comparison
अक्सर यह देखने में आया है कि सामाजिक विसंगतियों पर चोट करने के लिए उपदेश या भाषण की तुलना में व्यंग्य एक अधिक कारगर विधा है। हल्की-हल्की हँसीऔर तीखेपन के साथ कही गयी बातें भारी-भारी नसीहतों की तुलना में लोगों के दिलों में कहीं ज़्यादा घर करती हैं। इसीलिए हिन्दी में व्यंग्य की एक सुदीर्घ परम्परा है। बालमुकुन्द गुप्त और बालकृष्ण भट्ट की तो बात ही क्या, भारतेन्दु ही से व्यंग्य की यह धारा हिन्दी में बहने लगती है और हरिशंकर परसाई और शरद जोशी तक पहुँचते-पहुँचते एक स्थापित विधा का रूप ले लेती है। आज ऐसा कोई समाचार-पत्र या साप्ताहिक पत्रिका नहीं होगी जिसमें व्यंग्य का अनिवार्य स्थान न हों।