Geeta Rahasya(Hindi, Hardcover, Tilak Lokmanya Balgangadhar) | Zipri.in
Geeta Rahasya(Hindi, Hardcover, Tilak Lokmanya Balgangadhar)

Geeta Rahasya(Hindi, Hardcover, Tilak Lokmanya Balgangadhar)

Quick Overview

Rs.1000 on FlipkartBuy
Product Price Comparison
Book DescriptionGeeta Rahasya : Karmyog Shastra- (Vol.-1)About the Book :-प्रत्यक्ष अनुभव से यह स्पष्ट दिखाई देता है, कि श्रीमद्-भगवद्गीता वर्तमान युग में भी उतनी ही नावीन्यपूर्ण एवं स्पूफर्तिदात्री है, जितनी महाभारत में समाविष्ट होते समय थी । गीता के सन्देश का प्रभाव केवल दार्शनिक अथवा विद्वच्चर्चा का विषय नहीं है, अपितु आचार-विचारों के क्षेत्र में भी विद्यमान होकर मार्ग बतलानेवाला है । एक राष्ट्र तथा संस्कृति का पुनरुज्जीवन गीता का उपदेश करता आया है । संसार के अत्युच्च शास्त्रविषयक ग्रन्थों में उसका अविरोध से समावेश हुआ है ।गीताग्रन्थ पर स्वर्गीय लोकमान्य तिलकजी की व्याख्या निरी मल्लीनाथी व्याख्या नहीं है । वह एक स्वतन्त्र प्रबन्ध है । उसमें नैतिक सत्य का उचित निदर्शन भी है । अपनी सूक्ष्म और व्यापक विचारप्रणाली तथा प्रभावोत्पादक लेखनशैली के कारण मराठी भाषा का पहली श्रेणी का यह पहला प्रचण्ड गद्यग्रन्थ अभिजात वाघ्मय में समाविष्ट हुआ है । इस एक ही ग्रन्थ से यह स्पष्ट होता है, कि यदि तिलकजी सोचते तो मराठी साहित्य और नीतिशास्त्र के इतिहास में एक अनोखा स्थान पा सकते । किन्तु विधाता ने उनकी महत्ता के लिये वाघ्मयक्षेत्र नहीं रखा था ! इसलिये केवल मनोरंजनार्थ उन्होंने अनुसन्धान का महान् कार्य किया । यह अर्थपूर्ण घटना है, कि उनकी कीर्ति अजरामर करने वाले उनके अनुसन्धान-ग्रन्थ उनवेफ जीवितकार्यों से विवशतापूर्वक लिये हुये विश्रान्तिकाल में निर्मित हुये हैं ।स्वर्गीय तिलकजी की प्रतिभा के ये गौण आविष्कार भी इस हेतु से सम्बद्ध हैं, कि इस राष्ट्र का महान् भवितव्य उसवेफ उज्ज्वल गतेतिहास के योग्य हो । गीतारहस्य का विषय जो गीताग्रन्थ है, वह भारतीय आध्यात्मिकता का परिपक्व सुमधुर फल है । मानवी श्रम, जीवन और कर्म की महिमा का उपदेश अपनी अधिकारवाणी से देकर सच्चेे अध्यात्म का सनातन सन्देश गीता दे रही है, जो कि आधुनिक काल के ध्येयवाद के लिये आवश्यक है ।-बाबू अरविन्द घोष(बनारस-कानपुर के अभिभाषण से साभार)About the Author :-‘स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है’ की घोषणा करने वाले बालगंगाधर तिलक भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के कर्णधर और राष्ट्रीय जागरण के अग्रदूत थे । इनका जन्म 23 जुलाई सन् 1856 ई॰ को पूना (महाराष्ट्र) में हुआ था । शिक्षा प्राप्त करते ही ये सार्वजनिक क्षेत्र में कूद पड़े और लोगों में ‘मराठा’ (अंग्रेजी) और ‘केसरी’ (मराठी) पत्रों के माध्यम से जागृति पैदा करने लगे ।तिलक राष्ट्रीय आन्दोलन में गरम दल के नेता माने जाते थे । इस दल का कहना था कि मात्र प्रस्ताव पास करके ब्रिटिश सरकार से भारत को स्वतन्त्र नहीं कराया जा सकता । लाला लाजपतराय और विपिनचन्द्र पाल इनके साथी थे । ये तीनों उस समय लाल, बाल, पाल के नाम से प्रसिद्ध थे । अपने उग्र राष्ट्रीय विचारों के कारण तिलक को लम्बी अवधि तक बर्मा की मांडले जेल में बन्द रखा गया । इसी जेल प्रवास में तिलक जी ने ‘गीता रहस्य’ नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की । इसके अतिरिक्त इनकी एक और रचना प्रसिद्ध है जिसमें आर्यों के आर्य देश का वर्णन किया गया है । इन ग्रन्थों से प्रतीत होता है कि तिलक प्रथम कोटि के राजनीतिक नेता ही नहीं वरन् विविध विषयों के प्रकाण्ड विद्वान भी थे । सन् 1919 ई॰ में ब्रिटिश सरकार ने भारत के लिए जो एक्ट बनाया था उससे तिलक सन्तुष्ट नहीं थे । उनके विचारों का ही प्रभाव था कि दिसम्बर सन् 1920 ई॰ में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में देश का लक्ष्य औपनिवेशिक स्वराज्य के स्थान पर पूर्ण स्वराज्य घोषित किया गया । परन्तु तिलक यह शुभ दिन देखने के लिए जीवित नहीं रहे और 1 अगस्त सन् 1920 ई॰ को स्वर्ग सिधार गए ।