Hindi Patrakarita Ashvasti Aur Ashanka(Hindi, Hardcover, Mishra Krishna Bihari)
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डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र को एक स्थान पर बहुमान्य पत्रकार श्री अच्युतानंद मिश्र ने ‘हिंदी साहित्य और हिंदी पत्रकारिता के बीच सेतु’ कहा है। बात ठीक भी है। हिंदी के ललित-निबंध साहित्य को समृद्ध करने के साथ-साथ डॉ. मिश्र ने हिंदी पत्रकारिता के इतिहास का गहरा अध्ययन किया है। यह अध्ययन आगे चलकर शोध की दिशा में बढ़ा और इसकी फलश्रुति हिंदी पत्रकारिता पर लगभग आधा दर्जन पुस्तकों के रूप में हुई। पत्रकारिता के छात्रों, शोधार्थियों, पेशेवर पत्रकारों तथा सामान्य पाठकों ने इन पुस्तकों को समभाव से ग्रहण किया—कृतज्ञता के साथ।हिंदी पत्रकारिता, जातीय अस्मिता की जागरण-भूमिका का सरोकार पत्रकारिता के हेतु एवं प्रयोजन के साथ-साथ जातीय अस्मिता के संवर्धन में उसके महत्त्व से भी है। हमारे वरेण्य पत्रकारों में हिंदी पत्रकारिता की कठिन डगर पकड़ने की चाह क्यों और कैसे जगी तथा इस पथ पर उन्होंने अपना सर्वस्व क्यों निछावर किया, आदि प्रश्न यदि किसी के मन में उठें तो डॉ. मिश्र का सीधा उत्तर है—जातीय अस्मिता को जगाने के लिए। जातीय अस्मिता की जागृति में हिंदी पत्रकारिता को समर्पित साधकों ने कितने काल तक कितनी आहुतियाँ दीं, इस पुस्तक में उसके प्रेरक विवरण दर्ज हैं। यही नहीं, इस पुस्तक के दो परिशिष्टों में इस जागरण-भूमिका को पुष्ट करनेवाले दस्तावेज शामिल किए गए हैं। हिंदी के आसनसिद्ध निबंधकार की कलम से हिंदी पत्रकारिता के इतिहास से उजागर हुआ यह महत्त्वपूर्ण पक्ष हमारी जातीय अस्मिता के आलोक को देशव्यापी प्रसार देगा, ऐसा विश्वास और सहज आश्वस्ति है।—अजयेंद्रनाथ त्रिवेदी