Kabuliwala Tatha anya Kahaniya(Hindi, Hardcover, Tagore Rabindranath) | Zipri.in
Kabuliwala Tatha anya Kahaniya(Hindi, Hardcover, Tagore Rabindranath)

Kabuliwala Tatha anya Kahaniya(Hindi, Hardcover, Tagore Rabindranath)

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आकाश में धूप और बादल का खेल जैसे साधारण है, धरती पर इन दोनों का खेल भी वैसा ही साधारण और क्षणिक है। आकाश में जिस प्रकार धूप और बादल की आँख मिचौली न तो साधारण है और न खेल ही है, किंतु खिलवाड़-सा लगता है, उसी प्रकार इन दो कथित नर-नारी के कार्यहीन एक दिन का छोटा-सा इतिहास संसार की सैकड़ों घटनाओं की तुलना में सारहीन लग सकता है, किंतु वास्तव में वह सारहीन नहीं है। जो विधाता बड़ी और न दिखाई पड़ने वाली अटल गंभीरता से युग के साथ युगांतर को अनादिकाल से गूँथता चला आ रहा है, वही इस लड़की के सुबह-शाम के हँसने रोने में जीवनव्यापी सुख-दुख का बीज अंकुरित कर रहा था। फिर भी, इस लड़की का ऐसा अकारण रूठना कुछ अर्थहीन-सा लगा। केवल दर्शकों की दृष्टि में ही नहीं, बल्कि उस युवक की दृष्टि में भी, जो इस छोटे-से नाटक का प्रधान पात्र है। यह लड़की क्यों किसी दिन नाराज़ हो जाती है और क्यों किसी दिन अकूत स्नेह प्रकट करती रहती है? क्यों किसी दिन रोज़ का हिस्सा बढ़ा देती है और क्यों किसी दिन उसे - एकदम बंद कर देती है ?