Maa: Janmdayini Muktidayini (Hindi) by Acharya Prashant(Paperback, Acharya Prashant) | Zipri.in
Maa: Janmdayini Muktidayini (Hindi) by Acharya Prashant(Paperback, Acharya Prashant)

Maa: Janmdayini Muktidayini (Hindi) by Acharya Prashant(Paperback, Acharya Prashant)

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ये जो शब्द है ‘माँ’, इसके दो अर्थ हो सकते हैं। दोनों अलग-अलग आयामों के अर्थ हैं। एक अर्थ ज़मीन का है और एक अर्थ आसमान का है।एक अर्थ हो सकता है माँ का वो जिससे एक दूसरा शरीर निर्मित होता है। और सामान्यतया जहाँ कहीं भी हम देखते हैं कि एक व्यक्ति के शरीर से दूसरे व्यक्ति के शरीर का निर्माण हो रहा है, हम बड़ी आसानी से उस व्यक्ति को 'माता' का या 'पिता' का नाम दे देते हैं। ये बात सिर्फ़ शारीरिक है और इसीलिए बहुत सतही है।एक दूसरी माँ भी होती है जो तुम्हें शरीर से जन्म नहीं देती पर तुम्हें इस लायक बनाती है कि तुम समझ सको कि मन, शरीर और ये संसार क्या हैं। वो तुम्हारी वास्तविक माँ है।पहली माँ मात्र शरीर देती है, और जो दूसरी माँ होती है, वो शरीर से मुक्ति देती है। शरीर से मुक्ति देती है, इसका अर्थ है कि वो समझा देती है कि शरीर क्या है, मुक्ति क्या है और ये संसार क्या है।ममता नहीं, मातृभाव। ये हुआ वास्तविक अर्थों में माँ होना। पैदा तो कोई भी कर देता है, पर वास्तविक अर्थों में माँ हो पाना, पिता हो पाना बड़ा मुश्किल काम है। वो कोई-कोई होता है।तुम माँ हो पाओ, तुम पिता हो पाओ, उससे पहले एक शर्त रख रहा हूँ तुम्हारे सामने: सबसे पहले ख़ुद को जन्म दो। जिसने पहले स्वयं को जन्म नहीं दिया वो किसी और को जन्म नहीं दे पाएगा।