Nibandhon Ki Duniya : Nirala(Hardcover, Hindi, Ed. Nirmala Jain)
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हमारे साहित्य में यह क्या हो रहा है - यह भारतीय है, यह अभारतीय है, असंस्कृत। धन्य है, हे संस्कृति के बच्चो! – नस-नस में शरारत भरी, हज़ार वर्षों से सलाम ठोंकते-ठोंकते नाक में दम हो गया, अभी संस्कृति लिये फिरते हैं।'- यह भाषा और ये विचार किसके हो सकते हैं सिवाय सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' के! निबंध विधा की प्रकृति ही कुछ ऐसी है कि यह द्वंद्व और संघर्ष के वातावरण में और ज़्यादा खिल उठती है। निराला की कविता भी ऐसी है और उनके निबंध भी। दोनों में एक ही ऊष्मा, एक ही ताप, एक जैसी प्रखरता और एक जैसी मानवीयता के दर्शन होते हैं। कहा जा सकता है कि निराला ने कविता में विप्लव लाने की जो ऐतिहासिक भूमिका निभायी, उसके सैद्धांतिक पक्ष का निर्माण अपने निबंधों में किया। निराला का गद्य इस दृष्टि से अनूठा है कि वह जिरह की ज़मीन को कभी नहीं छोड़ता, फिर भी रसात्मकता से भरपूर है।