Pratibha Sthirta Evam Parivartan (प्रतिभा, स्थिरता एवं परिवर्तन)(Paperback, T.K. Oommen (टी. के. ऊमन)) | Zipri.in
Pratibha Sthirta Evam Parivartan (प्रतिभा, स्थिरता एवं परिवर्तन)(Paperback, T.K. Oommen (टी. के. ऊमन))

Pratibha Sthirta Evam Parivartan (प्रतिभा, स्थिरता एवं परिवर्तन)(Paperback, T.K. Oommen (टी. के. ऊमन))

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पुस्तक के बारे में : यह किताब उनकी पीएचडी थीसिस पर आधारित है। एक सुप्रसिद्ध जर्मन समाजशास्त्री ने तर्कसंगत-कानूनी, पारंपरिक और करिश्माई नाम से नेतृत्व टाइपोलॉजी प्रतिपादित की। उनके अनुसार,पहले दो, प्रणाली को स्थिर करने वाले हैं और करिश्माई नेतृत्व व्यवस्थाको बदलने वाला है। लेकिन इस पुस्तक में यह तर्क दिया गया है कि तीनों प्रकार,नेतृत्व प्रणाली को स्थिर करने और व्यवस्था को बदलने वाले हैं। भारत में भूदान-ग्रामदान आंदोलन की सादृश्यता के माध्यम से प्रो ऊमन तर्क देते हैं कि यह आंदोलन भारतीय ग्रामीण संदर्भ में परिवर्तन और स्थिरता] दोनों का स्रोत था। लेखक का परिचय : टी. के. ऊमन वर्तमान में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय मे प्रोफेसर एमेरिटस हैं जहाँ से वे 26 वर्षों तक प्रोफेसर रहने के बाद 2002 में सेवानिवृत्त हुए। वह अंतर्राष्ट्रीय समाजशास्त्रीय संघ के साथ&साथ भारतीय समाजशास्त्र समाज के अध्यक्ष रह चुके हैं। वह कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, बुडापेस्ट और उप्साला में उन्नत अध्ययन संस्थान सहित कई विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर& रिसर्च फेलो भी रह चुके हैं। उन्होंने Alien Concepts and South Asian Reality (Sage 1995) Citizenship, Nationality and Ethnicity (Polity 1997) Pluralism, Equality and Identity (OUP) 2002 समेत 20 किताबें लिखी हैं और 10 किताबों का संपादन किया है। उनकी नवीनतम किताब है Social Inclusion in Independent India: Dimensions and Approaches (Orient Black Swan 2014&2016)। वह वी.के.आर.वी. राव पुरस्कार समाजशास्त्र में (1981) समाजशास्त्र और सामाजिक नृविज्ञान में जी एस घुर्ये पुरस्कार (1985) और समाजशास्त्र में स्वामी प्रणवानंद पुरस्कार (1997) के प्राप्तकर्ता हैं। ऊमन भारत में मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शिक्षा स्थिति (2004-2006) का अध्ययन करने के लिए प्रधानमंत्री की उच्चस्तरीय समिति (सच्चरसमिति ) के सदस्य थे। वह 2008&2010 में इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च के नेशनल फेलो थे। उच्चशिक्षा में उनके योगदान के लिए ऊमन को 2008 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। उन्होंने दो आत्मकथाएँ भी प्रकाशित की हैं, जिनमें से पहली का शीर्षक "ट्रायल्स: क्लेश एंड ट्राइम्फ्सःलाइफ एंड टाइम्स ऑफ़ एसोशियोलॉजिस्ट" है और दूसरी का शीर्षक "भारत से इंडिया तक"है।