Prem Hai Dwar Prabhu Ka(Hardcover, Osho) | Zipri.in
Prem Hai Dwar Prabhu Ka(Hardcover, Osho)

Prem Hai Dwar Prabhu Ka(Hardcover, Osho)

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प्रेम--अनुशासन--क्रांति धार्मिकता ऐसी चीज है कि प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी सहारे के उपलब्ध कर सकता है। और विज्ञान बिना सहारे के उपलब्ध नहीं होता। इसलिए विज्ञान कलेक्टिव एफर्ट है और रिलीजन इंडिविजुअल एफर्ट है। जैसे कि दुनिया के सब प्रेमी--जितने हुए हैं दुनिया में--वे न भी हुए होते, तो भी मैं प्रेम करता। प्रेम के लिए परंपरा की जरूरत नहीं कि लैला हो, मजनू हो, फरहाद हो, शीरी हो, तब मैं प्रेम कर सकता हूं। कोई न हुए हों, तो भी मैं प्रेम कर सकता हूं। प्रेम बिलकुल वैयक्तिक, एक-एक व्यक्ति की क्षमता है। लेकिन अगर बैलगाड़ी का चाक बनाने वाला न हुआ हो, तो हवाई जहाज नहीं बन सकता। क्योंकि वह उसी श्रृंखला का हिस्सा है। तो विज्ञान सामाजिक उपक्रम है और धर्म वैयक्तिक अनुभव है। और यह दोनों में इतना बुनियादी फर्क है। इसलिए धर्म एक स्वतंत्रता है, विज्ञान एक स्वतंत्रता नहीं है। उसमें आप पीछे से बंधे हैं। हमेशा बंधे हुए हैं। धर्म एक स्वतंत्रता है, उसमें कोई किसी से बंधा हुआ नहीं है। ओशो