Sanskriti Aur Samaj(Hardcover, Subhash Sharma)
Quick Overview
संस्कृति और समाज - संस्कृति किसी मानव-समाज में लम्बे कालखण्ड में निर्मित होती है क्योंकि मनुष्य अपनी जीवन शैली में विभिन्न आयामों को परिष्कृत करता रहता है। यह संस्कृति ही है जो मनुष्य को समाज के नियमों और मूल्यों को स्वतः अपनाने की प्रेरणा देती है, क्योंकि इसका मौलिक गुण समरसता स्थापित करना होता है। यह ध्यातव्य है कि संस्कृति में सहयोग के साथ-साथ संघर्ष के बीज भी निहित होते हैं। यह एक ओर परम्पराओं को चालू रखना चाहती है तो दूसरी ओर आधुनिकता की लहरों को भी शनैः शनैः स्वीकार करती है। अस्तु, यह कई परम्पराओं को काटती, छाँटती और बदलती रहती है।एक और बात, भाषा किसी संस्कृति का मुख्य वाहक होती है। किसी समाज की संस्कृति को जानने-समझने के लिए वहाँ की भाषा या भाषाओं को जानना ज़रूरी है। यद्यपि भूमण्डलीकरण की आँधी के कारण कई छोटे-मोटे समुदायों-समाजों की प्राचीन भाषाएँ और उनकी लिपियाँ लुप्त हो रही हैं, अतः इस पुस्तक में भाषाओं का क्षरण और मरण भारी चिन्ता का विषय मानकर विश्लेषण किया गया है। इन दिनों विभिन्न संस्कृतियों के मेल-जोल और उपभोक्तावाद की बढ़ती हुई प्रवृत्ति के कारण भारतीय संस्कृति में अनेक दूषित तत्त्व प्रवेश कर गये हैं। ऐसे में विभिन्न संस्कृतियों का मिश्रण सुखद व हितकारी तभी हो सकता है जब उनके लिए समान भावभूमि निर्मित हो।विद्वान लेखक ने संस्कृति के विभिन्न सैद्धान्तिक और व्यावहारिक पक्षों का इस कृति में सम्यक् रूप से विशद विश्लेषण किया है। आशा है, संस्कृति और समाज के सजग अध्येता पाठक इस कृति से अवश्य ही लाभान्वित होंगे।