Satrangi Atrangi Indradhanush(Paperback, Pushpa Sharma 'Aparajita') | Zipri.in
Satrangi Atrangi Indradhanush(Paperback, Pushpa Sharma 'Aparajita')

Satrangi Atrangi Indradhanush(Paperback, Pushpa Sharma 'Aparajita')

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प्रिय पाठकों,प्रस्तुत कविता संग्रह मेरे जीवन की रोचक, चुनौतीपूर्ण एवं जिजीविषा से परिपूर्ण यात्रा का कवित्त स्वरूप है। मोहभंग और अनास्था के कटु क्षणों ने मेरे काव्याभिव्यक्ति को प्रेरित किया। यह वास्तव में मेरी कवि-प्रसून की प्रथम कली थी। मैं इन कविताओं के माध्यम से आपके भीतर के प्रकृति – प्रेमी एवं मानवतावाद की अनुभूतियों के शाश्वत श्रोत से संवाद स्थापित करना चाहती हूं।इन रचनाओं में यदि कुछ काव्य- त्रुटियों मिलें तो गुणी जनों से क्षमा-प्रार्थी हूं।मेरे प्रेरणा स्त्रोत:डॉ राजेंद्र सिंहसंपादककांगड़ा, हिमाचल प्रदेशमो. 9418473314ये है उनके शब्द सुमन :मेरे ईश्वर मुझको बस इतना-सा वर देना तू,मानव बन सकूं बस इतना-सा कर देना तू।।जीवन की हो कड़ी दोपहरी, सब कुछ विस्मृत हो जाए, वाणी पर हो नाम तेरा तो, उसकी झोली भर देना तू।।साहित्य में अभिरुचि छात्र जीवन से थी और छात्र जीवन में भी किशोरावस्था से। विभिन्न विषयों पर रचनाएं करते हुए दिन बीतते चले गए वर्ष गुजरते चले गए और एक लंबा अरसा हो गया इस साहित्य की रचनाधर्मिता के मार्ग पर, परिणाम स्वरूप विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय काव्य संग्रह में प्रकाशित होता रहा हूं।कॉलेज के दिनों से ही आकाशवाणी से जुड़ना मेरे लिए सौभाग्य की बात थी, जिसके कारण मेरी भाषा में तो निखार आया ही उच्चारण एवं विषय के अनुसार शब्दों का चयन कैसे किया जाता है यह सीखने में भी बहुत सहायता मिली।बहुत दिनों से प्रयास कर रहा था कि एक पुस्तक का संपादन किया जाए। यह प्रयास परिपक्व होने को था कि मेरा परिचय हुआ केंद्रीय विद्यालय की प्राचार्य श्रीमती पुष्पा शर्मा से। वास्तव में मेरा परिचय एक प्राचार्य से नहीं बल्कि जीवन के विस्तृत फलक को अपने संवेदनशील हृदय की अथाह गहराइयों से जीवन का सच अभिव्यक्त करने वाली एक ऐसी कवयित्री से हुआ था, जिसके पास जीवन की प्रत्येक प्रतिकूल परिस्थिति में राह बनाने का अभूतपूर्व साहस था, और सबसे बढ़कर उसके पास थी ‘जिजीविषा’। इसी कारण वह प्रकृति से निकटता स्थापित करने में सफल हो पाती थीं।उनकी कविताओं में चंचल नदिया का कलरव भी है और अथाह गहराई को अपने में समेटे विशाल शांत सागर का गांभीर्य भी। मानवीय संबंधों का ताना-बाना हो या प्रकृति से होने वाली खिलवाड़ जनित वेदना सभी इनकी कविताओं का वर्ण्य विषय रहा है।सभी पाठकों से विनम्र निवेदन है कि काव्य-संग्रह “सतरंगी अतरंगी इंद्रधनुष” कैसा लगा हमें पढ़कर अवश्य अवगत कराएं।धन्यवाद।