Seekh(Hindi, Paperback, Bhandari Rajni)
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अपनी ख़ुशी तलाशती मैं कभी बंद आलमारी और बंद दरवज्ञों में कभी खुली खिड़िकयों में तो कभी यादों के झरोखों में कभी गैस पर चढ़े कुकर में तो कभी भगोने में उबलती खीर में कभी सड़क से आती कार की आवाज़ में तो कभी सड़क पर चलती हवा में कभी बजती डोर बेल में तो कभी सुनाई आती आरती में कभी नल से टपकते पानी में तो कभी भरे मठके में कभी सनन्नाटे को चीरती सब्जी वाले की आवाज़ में कभी सोचती सी में, जाने कहाँ गए वे दिन वापस उनके लौटने की आशा में और समेटी हुई अपनी अभिलाषा में बटोरी गई हिम्मत और समेटी गई उम्मीद में ।