Vijaypath : Brand Modi Ki Guarantee(Hardcover, Dharmendra Kumar Singh) | Zipri.in
Vijaypath : Brand Modi Ki Guarantee(Hardcover, Dharmendra Kumar Singh)

Vijaypath : Brand Modi Ki Guarantee(Hardcover, Dharmendra Kumar Singh)

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शतरंज हो या सियासी बिसात, दोनों ही जगह जीतने के लिए सही चाल चलनी पड़ती है। आख़िर राजनीति भी एक गेम की तरह ही है, क्योंकि जिसकी तैयारी, मेहनत, लगन, सोच और रणनीति ज़्यादा दमदार होती है, वही विजयपथ का शहंशाह भी बनता है। ऐसे ही एक शहंशाह का नाम है नरेन्द्र मोदी जो 22 साल से निरन्तर सत्ता में बने हुए हैं। जिन्होंने कभी हार नहीं देखी बल्कि जिनका जीत का रिकॉर्ड बनता जा रहा है। 2014 में बदलाव की बयार पर सवार होकर अहमदाबाद से दिल्ली आये, 2014 का चुनाव अपने नाम पर जीते, 2019 का चुनाव नाम और काम पर जीते और अब 2024 का चुनाव मोदी की गारंटी पर जीतने का दावा कर रहे हैं। वहीं इंडिया गठबन्धन उनकी जीत के रथ को रोकना चाहता है। इस गठबन्धन में अप्रत्याशित रूप से एक-दूसरे से लड़ने-भिड़ने वाली पार्टियाँ भी एक मंच पर आ जुटी हैं। आज़ादी के बाद ये पहला मौक़ा है कि जीत के लिए गठबन्धन की इतनी बड़ी फ़ौज खड़ी हुई है। लेकिन फक्त गठबन्धन का भी मामला नहीं है, क्योंकि 2019 में यूपीए का गठबन्धन एनडीए से बड़ा था।ज़ाहिर है कि बदलाव की प्रक्रिया भी निरन्तर चलती है। नोटबन्दी, जीएसटी, महँगाई और बेरोज़गारी की मार के बाद भी जीत हो जाये तो इसे दीवानगी नहीं तो भला और क्या कहेंगे। आख़िरकार क्या और क्यों है दीवानगी? क्या है ये हिन्दूवाद, राष्ट्रवाद और विकासवाद? ब्रांड मोदी का कमाल या जनकल्याणकारी योजनाओं की बौछार का परिणाम है? इसी गुत्थी को इस किताब में सुलझाने की कोशिश की गयी है। सवाल है कि क्या इंडिया गठबन्धन मोदी के विजयपथ को रोक पायेगा? इसकी परीक्षा आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक पैमाने पर की गयी है। आख़िरकार जीत का क्या मन्त्र है- गठबन्धन की मज़बूती, मुद्दे की मार, निर्णायक नेतृत्व या मज़बूत संगठन? सवाल है क्या परिवारवादी पार्टियों और भ्रष्टाचारी नेताओं की वजह से विपक्षी पार्टियाँ अपनी विश्वसनीयता खो चुकी हैं? ऐसा क्या बदलाव हुआ कि वोटरों की नब्ज़ को विपक्ष नहीं पकड़ पा रहा है?यह किताब इसी रहस्य के हर सूत्र को तमाम आँकड़ों के साथ सामने लाने का प्रयास करती है। इन आँकड़ों और बारीक तथा रोचक जानकारियों से कई पुराने और नये मिथक भी धराशायी होते हैं और ये नये नज़रिये की ओर भी ले जाते हैं। मसलन, मोदी चेहरा न होते तो 2014 में बीजेपी की सीटें 200 के पार नहीं जा पातीं, गठबन्धन नहीं होता तो बीजेपी को बहुमत नहीं मिलता और एयर स्ट्राइक नहीं होती तो बीजेपी 300 के पार नहीं जाती ।