Vyatha Kaunteya Ki Novel Book(Paperback, Manorama Srivastava) | Zipri.in
Vyatha Kaunteya Ki Novel Book(Paperback, Manorama Srivastava)

Vyatha Kaunteya Ki Novel Book(Paperback, Manorama Srivastava)

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सूर्यपुत्र की अलौकिक तेजस्विता एवं देदीप्यमान कवच-कुंडल के साथ कर्ण के धरावतरण पर उसे प्रथम प्रतिकार किसी और से नहीं अपितु अपनी ही जन्मदात्री से मिलता है, जो उस नवजात शिशु को एक पिटारे में रखकर वेगवती नदी में प्रवाहित कर देती है और यहीं से प्रारंभ होती है काल-प्रवाह में नियति के थपेड़ों को झेलते हुए कौंतेय की व्यथा-कथा।वह कौंतेय है, कुलीन है, पराक्रमी है, अजेय है, किंतु उसकी नियति उसे अकुलीनता, हीनता एवं अंतहीन उपेक्षा के अपरिमित दर्द और दंश के साथ निरंतर घेरे रहती है। देवराज इंद्र के छल-छद्म के कारण अपने कवच-कुंडल से वंचित वह महादानी, राजमाता कुंती को पांडवों की प्राणरक्षा हेतु दिए गए अपने वचन के कारण भी स्वयं अपने त्रासद जीवन की पटकथा का सर्जक है।महाभारत के अनेक दहकते प्रश्नों का निर्मम विश्लेषण करती हुई यह कृति जहाँ अपने औपन्यासिक विस्तार में कर्ण के देवोपम मानवीय गुणों को प्रतिष्ठित करती है, वहीं अंततोगत्वा यह प्रश्न भी उठाती है कि 'क्या कौंतेय की व्यथा का कोई अंत भी है?' देवलोक में श्रीकृष्ण के समक्ष कर्ण की गहन अंतर्वेदना को उद्घाटित करती संवेदना-प्रवण भावाभिव्यक्ति एक फेनिल ताजगी के साथ कर्ण की व्यथा-कथा को अत्यंत विचारोत्तेजक एवं पठनीय बना देती है।