अनुभव(Paperback, मोहित कुमार 'अक्षत')
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यदि एक पंक्ति में इन कविताओं को परिभाषित करना हो तो - कुछ व्यथा हैं कुछ खुद से सवाल हैं और कुछ खुद ही को उनके जवाब हैं। मैं अपने लेखन या विचारों से किसी को कुछ सिखाऊँ, मेरी ऐसी कोई मनसा नहीं है। ना ही मैं किसी से आशा रखता हूँ कि कोई मुझसे कुछ सीखे और ना ही मैं स्वयं को इतना योग्य समझता हूँ कि मैं किसी को कुछ सीखा पाऊँ। मैंने जो देखा जो महसूस किया सो लिखा। ये अधिकांश कविताएं मेरे अंदर चल रही कसमकस से जन्मी हैं और अन्य आस पड़ोस से प्रेरित है। कभी सर्द हवाएं, कभी लू चली, यत्न सफल हुआ कभी, कभी निराशा हाथ लगी। नाकारी को महामारी ने सींचा, ज्ञानी ने आँखों को मींचा। पुष्प सूख कर गिर गए, कलियाँ अभी खिली नहीं। कर अपने प्रण पर पुनः विचार, क्या इससे हित में है संसार, वरना तो ले सुदर्शन, केशव भी थे रण में तैयार।