विपात्र (vipaatr)(Paperback, जी. एम. मुक्तिबोध (G. M. Muktibodh))
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These are reprint editions reprinted with the help of original book just to give the original look and feel we do not change its format and text due to which in some cases the text is not like new. किताब के बारे में: विपात्र गजानन माधव मुक्तिबोध का एक अधूरा किंतु अत्यंत महत्त्वपूर्ण आत्मकथात्मक उपन्यास है, जो व्यक्ति और समाज के द्वंद्व, आत्मसंघर्ष और बौद्धिक चेतना को दर्शाता है। इसका नायक एक संवेदनशील, विचारशील, और आत्मविश्लेषी व्यक्ति है जो सामाजिक अन्याय, भ्रष्ट राजनीति और सांस्कृतिक विघटन से जूझता है। उपन्यास में विचारों की जटिलता, आत्मा की छटपटाहट और अस्तित्व की गहराई स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। विपात्र एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो समय और सत्ता से टकराता है, लेकिन कहीं न कहीं खुद को भी समझने की कोशिश करता है। यह उपन्यास विचारधारा और आत्मबोध का अनूठा दस्तावेज़ है। लेखक के बारे में: गजानन माधव मुक्तिबोध (1917-1964) 20वीं सदी के अग्रणी हिंदी कवि आलोचक निबंधकार और कथाकार थे। वे नई कविता आंदोलन के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। उनकी कविताएँ जैसे चाँद का मुँह टेढ़ा है अँधेरे में में समाज सत्ता और आत्मसंघर्ष का गहन चित्रण मिलता है। मुक्तिबोध ने कामायनीरू एक पुनर्विचार एक साहित्यिक की डायरी जैसी आलोचनात्मक रचनाओं से हिंदी आलोचना को नई दिशा दी। उनके उपन्यास विपात्र और लघुकथाएँ सामाजिक विडंबनाओं को उजागर करती हैं। वे विचारधाराए मार्क्सवाद और आत्मबोध से गहरे प्रभावित थे। उनका लेखन आत्मसंघर्ष और सामाजिक परिवर्तन की चेतना से ओतप्रोत है। The Title 'विपात्र (vipaatr) written/authored/edited by जी. एम. मुक्तिबोध (G. M. Muktibodh)', published in the year 1926. The ISBN 9789372259087 is assigned to the Paperback version of this title. This book has total of pp. 110 (Pages). The publisher of this title is Gyan Publishing House. This Book is in Hindi. The subject of this book is Hindi Story. Size of the book is 13.34 x 21.59 cms.