Chand Se Pani(Paperback, Hindi, Shiromani Mahto)
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भारतीय धर्म-दर्शन में दर्शाये गये चार पुरुषार्थों-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को शास्त्रीय अर्थों में ही न समझकर, व्यावहारिक अर्थ में भी समझना और उन्हें क्रमश: जीवन के चार आश्रमों-ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास के साथ सुसंगठित रीति से संगति बिठाते हुए जीवन को सार्थकता प्रदान करना ही मनुष्य का अभीष्ट होना चाहिए। यही वास्तविक शिक्षा और संस्कार है। यह जानना ही चेतना का प्रतीक है। इस चेतना के जागृत होते ही संसार में सम्पन्न हो रहे तमाम कर्मकाण्डों का आडम्बर स्पष्ट हो जाता है....भोग और त्याग का यथार्थ भी स्पष्ट हो जाता है। करुणा श्री इस यथार्थ की जानकार, सचेत और सुलझी हुई रचनाकार हैं। उन्होंने 'क्षमाकान्तÓ और उसके पालक श्मशानवासी बाबा के माध्यम से जिस सात्विकता के साथ कथा सूत्र में चारों पुरुषार्थों को क्रमश: पिरोते हुए जीवन के निर्माण को दर्शाया है वह अद्भुत है और प्रशंसनीय भी...। यहाँ 'मोक्षÓ का वास्तविक अर्थ उभरता है। दरअसल, इन्द्रिय-संयम के साथ सांसारिक जीवन को सार्थकता के भाव से जीते हुए आत्म को विश्वात्म में समाहित करते जाना ही 'मोक्षÓ है। 'मोक्षÓ या 'मुक्तिÓ केवल वह नहीं,जो मृत्यु की अनिवार्य प्रक्रिया के पश्चात् आत्मा के परमात्मा में विलीन हो जाने पर जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाने वाला भाव है बल्कि जीवन रहते स्वयं को 'मैंÓ और 'मेराÓ, 'अहंÓ और आत्मकेन्द्रित सुखों, स्वार्थ, लालसाओं से मुक्त कर परोपकार, सेवा, त्याग, करुणा के भावों से समष्टि के लिए समर्पित हो जाने का भाव ही वास्तविक 'मोक्षÓ है। उपनिषद् भी निर्देश देते हैं– 'तेन त्यक्तेन भुजिथा:Ó अर्थात् त्याग के साथ भोग करो। यही बुद्ध का दर्शाया मध्यम मार्ग है। करुणा श्री इसी मध्यम मार्ग की अनुगामिनी प्रतीत होती हैं।