Chintan ke Jansarokar(Hindi, Paperback, Premkumar Mani)
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‘चिंतन के जनसरोकार’ प्रेमकुमार मणि के विविध लेखों का संग्रह है। इसके दो खण्ड हैं। पहले खण्ड में समाज और राजनीति पर केंद्रित लेख हैं, तो दूसरे खण्ड में साहित्य व संस्कृति से संबंधित लेखों को रखा गया है। इस किताब के विविध लेख पाठक को इतिहास, समाज, अर्थव्यवस्था, संस्कृति और साहित्य को देखने का एक नया नजरिया प्रदान करते हैं। एक तरफ मणि जी भारत के महानायकों आंबेडकर, रविन्द्रनाथ टैगोर और गांधी के चिन्तन पर विचार करते है, तो दूसरी तरफ पश्चिमी विचारक बर्ट्रेंड रसेल से भी संवाद कायम करते हैं। भारतीय राजनीति पर लेखक की पैनी निगाह है। दलित-बहुजनों की राजनीति की सामर्थ्य और सीमा को लेखक सामने लाता है, हिंदुत्व की राजनीति के उभार और विस्तार के कारणों का भी विवेचन किया गया है। बहुजन साहित्य और साहित्य में जाति-विमर्श पर दो लेख हैं। “किसकी पूजा कर रहे हैं बहुजन?” शीर्षक लेख ने हिंदी पट्टी में एक विचारोत्तेजक बहस को जन्म दिया था। यह लेख भी इस किताब में संग्रहित है। अपने शिल्प और बुनावट में पाठकों से संवाद करती हुई, यह अत्यन्त पठनीय और विचारोत्तेजक किताब है। किसी किताब की सबसे बड़ी सार्थकता यह होती है कि वह पाठक की संवेदना को झकझोरे और उसकी वैचारिकी को व्यापक बनाए। इन दोनों कसौटियों पर भी ‘चिंतन के जनसरोकार’ किताब खरी उतरती है।