Himachal Pradesh Ki Lokkathayen(Paperback, Dr. Ashu Phull)
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समय के निकष पर पककर लोकविश्वास, किंवदंतियाँ, लोकाचार, धार्मिक एवं सामाजिक मानयताएँ लोककथाओं का निर्माण करती हैं। इनका निर्माण या सृजन स्थापित होने में शताब्दियाँ लग जाती हैं, क्योंकि हर वक्ता या हर काथू का कथावाचक कुछ-न-कुछ अपना जोड़ता जाहा है और अंततः मौखिक यात्रा पर निकली लोककथा कुंदन बन जाती है।धार्मिक विश्वासों में देवी-देवताओं का आशीर्वाद, धार्मिक स्थलों के प्रति अगाध श्रद्धा बोलियों की विविधता की लोककथाओं को विशिष्ट बना देती है। लोककथाओं में घर-परिवार, गाँव एवं समाज का संश्लिष्ट चित्रण तो आकर्षण उत्पन्न करता ही है, परंतु साथ ही पर्वतीय प्रदेश की बोली तसवीर प्रस्तुत करने में भी सहायक सिद्ध होती है। हिमाचल की लोककथाओं का अपना आस्वाद है। मनुष्य के सभी प्रकार के हाव-भाव इन लोककथाओं में रोचक, सार्थक एवं व्यवहारिक पक्ष में साकार हो उठते हैं। ये लोककथाएँ हर आयुवर्ग के पाठकों को गुदगुदाएँगी और सांकेतिक रूप के जीवन को उपयोगी ढंग से जीने एवं ढालने में सहायक होगी, इसमें संदेह नहीं।