Nibandhon Ki Duniya :Pratapnarain Mishra(Hardcover, Hindi, Ed. Nirmala Jain)
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माना गया है कि हिन्दी गद्य और पद्य लिखने में हरिश्चन्द्र जैसे तेज़, तीखे और बेधड़क थे, प्रतापनारायण भी वैसे ही थे। दूसरे लोग बहुत सोच-समझकर और बड़ी चेष्टा से जो ख़ूबियाँ अपने गद्य में पैदा करते थे, वह प्रतापनारायण मिश्र को सामने पड़ी मिल जाती थी। उनका सर्वाधिक मुखर साहित्यिक रूप उनके निबन्धों में ही मिलता है। इस चयन के रूप में उनके निबन्धों की दुनिया का सशक्त विशिष्ट और प्रतिनिधि रूप सामने लाया गया है। बानगी के लिए उनके कुछ निबन्धों का नाम लिया जा सकता है, जैसे 'भों', 'पौराणिक गूढार्थ', 'हो ओ ओ ओ ली है', 'मुच्छ', 'बज्रमूर्ख' इत्यादि। 'मुच्छ' उनका दिलचस्प निबन्ध है।