Pradakshina Ke Patra(Hindi, Paperback, Prasad Yogendra)
Quick Overview
Product Price Comparison
राम-काव्य की परंपरा में मैथिलीशरण गुप्त का विशेष स्थान है। साकेत, पंचवटी आदि काव्यों की रचना के माध्यम से गुप्तजी ने इस रामकाव्य की परंपरा को आगे, बढ़ाने का काम किया है और इसी बहाने राम के प्रति अपनी आस्था एवं भक्ति का परिचय, भी दिया है।'प्रदक्षिणा' गुप्तजी का एक लघु खंडकाव्य है, जो इसी परंपरा की एक छोटी सी, कड़ी है। इस काव्य की पृष्ठभूमि साकेत और पंचवटी पर ही आधारित है। काव्य की, कथावस्तु यद्यपि तुलसी के रामचरितमानस की ही कथावस्तु है, फिर भी दोनों को, कथावस्तु में एक मौलिक अंतर आ गया है। मानस के सारे पात्र जहाँ दैवीय हैं, वहीं, प्रदक्षिणा के पात्र दैवीय कम, मानवीय अधिक हैं। गुप्तजी ने प्रदक्षिणा में सारे पौराणिक, पात्रों को दैवीय से मानवीय धरातल पर उतारा है और उनके चरित्र में मानवीय गुणों को, भरकर हमारे लिए अधिक ग्राह्य बना दिया है।