Satyagraha: Water-Forest Conflict In Chhattisgarh(Paperback, Ashish Singh)
      
      
 
 
 
    
 
        
     
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  छत्तीसगढ़ में जल और जंगल के संघर्ष का इतिहास सौ साल पुराना है। जल और जंगल के हुए सत्याग्रहों को हम स्वाधीनता संग्राम समझते हैं, क्योंकि उनमें भी उन्हीं सत्याग्रहियों की उपस्थिति या प्रेरणा या दोनों थी, जो देश की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे थे। जल और जंगल के संघर्ष में छत्तीसगढ़ ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दुःख इस बात का है कि इतिहास में उन घटनाओं का उल्लेख प्रायः प्रसंगवश ही किया जाता है।ऐसा कर हम इन आदिवासी सत्याग्रहियों के बलिदानों की अनदेखी कर देते हैं। कंडेल नहर सत्याग्रह, नगरी, सिंहावा, नवापारा-तानवट तथा बदराटोला का जंगल सत्याग्रह ब्रिटिश प्रशासन के तुगलकी आदेशों का परिणाम थे। आदेशों के पालन के लिए जिस तरह अंग्रेजों के भारतीय कारिंदों ने जोर-जबरदस्ती और अमानवीयता दिखाई, उससे संघर्ष को और अधिक बल मिला। स्वाधीनता के अमृतकाल में उन अचर्चित सेनानियों का स्मरण का यह समयोचित अवसर है, जिन्होंने न यश की कामना की थी और न जिन्हें वांछित सम्मान ही मिला। 'सत्याग्रह' में उन समस्त स्वतंत्रता सेनानियों का जीवन परिचय संगृहीत है, जिन्होंने जल-जंगल के सत्याग्रहों में भाग लिया अथवा मार्गदर्शन किया। नई पीढ़ी इन हुतात्माओं के त्याग, संघर्ष, समर्पण और साहस से परिचित हो, इसी उद्देश्य से यह पुस्तक लिखी गई है।