Surajmukhi Ke Kheton Tak(Hardcover, Ekant Shrivatava) | Zipri.in
Surajmukhi Ke Kheton Tak(Hardcover, Ekant Shrivatava)

Surajmukhi Ke Kheton Tak(Hardcover, Ekant Shrivatava)

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एकान्त श्रीवास्तव उन थोड़े-से कवियों में हैं जिनके बिना आज की हिन्दी कविता का मानचित्र पूरा नहीं होता ।पिछली शताब्दी की नवीं दहाई में जिन कवियों ने हिन्दी कविता को नयी लोक - ऊर्जा से आविष्ट कर दिया, उनमें एकान्त अग्रगण्य हैं। एक-दो अपवादों को छोड़ दें तो एकान्त श्रीवास्तव सम्भवतः अकेले कवि हैं जिन्हें गाँव और लोकजीवन का चितेरा कहा जा सकता है। अगर हम उनके पिछले संग्रहों के नामों पर ध्यान दें तो यह सहज ही सत्यापित हो जाता है - अन्न, मिट्टी, बीज, नागकेसर, धरती और अब यह सूरजमुखी के खेतों तक जो स्वभावतः ही कृषक को, भारतीय गाँवों को और गाँव के घर को समर्पित हैं। एकान्त की कविता किसान, गाँव और खेतों की कविता है ।त्रिलोचन और केदारनाथ अग्रवाल की याद दिलाती यह कविता अभी के काव्य- परिदृश्य में बिल्कुल पृथक् प्रतिसंसार रचने वाली कविता है जैसे आयरिश सीमस हीनी या अमेरिकी कवयित्री ग्लिक की कविता। यह प्रचलन से भिन्न कोटि की कविता है जो कई बार मोहक, अन्तर्विरोध विहीन, सुषम और मासूम प्रतीत होती है । लेकिन ध्यान देने पर लगता है कि यह विकास की अवधारणा, असमानता और अन्याय की भर्त्सना करती हुई कविता है। पुराने गाँव, घर, कुटुम्ब, प्रेम, सौहार्द और सौन्दर्य के निरन्तर लुप्त होते जाने के अवसाद और उदासी से भरी हुई कविता है। ये गाँव और जीवन वही नहीं हैं जो बचपन की स्मृतियों में वास करते हैं। किसी भी समाज को मापने का एक तरीक़ा उसके ग्रामीण जीवन को मापना है । आज हमारे गाँव, हमारी प्रकृति, हमारे ग्रामीण और वन और आदिवासी जन महानगरों के उच्छिष्ट हैं । एकान्त की कविता इसी अन्याय और असमानता का प्रतिरोधी स्वर है और जो कुछ भी रागमय, ललित या प्राणमय है, उसका यशोगान है। आकस्मिक नहीं कि अनेक कविताएँ कुछ भूली हुई, पुरातन लयों की याद दिलाती हैं और माँ, पिता, बहन, भाई परिजन की स्मृति हमें आर्द्र कर देती है। इस अर्थ में एकान्त की कविता विचारशुष्क न होकर भावों के रस से भरी है ।एकान्त की कविताओं को पढ़ते हुए मैंने पाया कि ग़रीबों पर इतनी बड़ी संख्या में इतनी मार्मिक कविताएँ हाल के दिनों में बहुत कम लिखी गयी हैं । 'एक साड़ी में जीवन बिताने की तकनीक’, 'ढोलक बजाती लड़की', 'पुराने कपड़ों का बाज़ार’, ‘अनाज गोदाम के मार्ग से दाने चुनती स्त्रियाँ’, ‘गोंद इकट्ठा करने वाली बच्चियाँ', 'खँडहर में घर' ऐसी ही कुछ मर्मस्पर्शी कविताएँ हैं जो दैन्य को प्रगट करते हुए भी मनुष्य की गरिमा का सम्मान करती हैं। यह भी लगा कि एकान्त ने प्रकृति के सौन्दर्य को बिल्कुल नये, अछूते प्रसंगों, दृश्यों और चरित्रों से व्यक्त किया है। सौन्दर्य का यह प्रकार आज विरल है। 'लाल यह बादाम का वन’, ‘पक रहा है शहद', 'ततैया का घर', 'पैदल पुल', ‘वन में बारिश' इसके कुछ प्रमाण हैं । इसी के साथ यह भी जोड़ना ज़रूरी है कि किसान जीवन के कुछ बिम्ब शायद पहले कभी ऐसी तन्मयता से नहीं आये, जैसे- 'गुड़ाई करते समय’, ‘लुवाई के दिन', 'खेत सूने पड़ गये हैं' वग़ैरह। लेकिन जिन कविताओं में लोकजीवन का राग, जीवन की प्रगाढ़ता और बृहत्तर आशयों का सन्धान मिलता है, वे एकान्त के काव्य का शिखर मानी जा सकती हैं और साथ ही हमारी कविता की उपलब्धि भी । उदाहरण के लिए- 'फूल बुलाता जल के भीतर', 'मज़ार', 'इक़बाल अहमद और उनके पिता', 'नहीं आने के लिए कहकर', 'पत्थर की आँख', 'ओ काली चींटियो', 'साही', या ‘अधबना घर’। ये विलक्षण कविताएँ हैं। एकान्त श्रीवास्तव की और आज के समय की प्रतिनिधि कविताएँ। एकान्त की कविताएँ यह सिद्ध करती हैं कि एकान्त और उनके सहचर कवि आज भी हमारे अत्यन्त सशक्त स्वर हैं। नदी तो एक ही होती है, लेकिन उसके रास्ते, धाराएँ और शाखाएँ बहुत अलग-अलग । एकान्त श्रीवास्तव की कविता पाठकों को पुनः आश्वस्त करती है कि हिन्दी कविता के जलग्रहण क्षेत्र लगातार प्रशस्त हो रहे हैं । ये कविताएँ हमें आस्वाद और विश्लेषण की नयी प्रविधि आविष्कृत करने को विवश करती हैं सूरजमुखी के खेतों तक का रास्ता कठोर और बीहड़ है : वे रास्ते महान हैंजो पत्थरों से भरे हैंमगर जो हमेंसूरजमुखी के खेतों तक ले जाते हैंएकान्त की कविता भी सूरजमुखी का फूल है । धूप, जल, रंग और गन्ध से भरी हुई ।-अरुण कमल