Maa BagalaMukhi Devi Photo | Zipri.in
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Maa BagalaMukhi Devi Photo

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शत्रुओंको नष्ट करनेकी इच्छा पालनवाली और समष्टिरूपमें भगवानकी संहार- शक्ति ही वगला है। पीताम्बरविद्याके नामसे मंत्र वग्लामुखीकी साधना अभ्यास शत्रुभयसे मुक्ति और वाक- सिद्धिके के लिए मिलता है। उपासना में हरिद्रामाला, पीत पुष्प एवं पीतवस्त्रका विधान है। महाविद्याओं में इनका आठवाँ स्थान है। इनमें ध्यान बताया गया है। कि ये सुधासमुद्रके मध्यमें स्थित मणिमय मंडप में रत्नमय सिंहासन पर विराज रही हैं। ये पीतवर्णके वस्त्र, पीत आभूषण और पुष्प पुष्पोंकी ही धारण धारण करते हैं। इनमें एक हाथ में शत्रु की जिह्वा और दूसरे हाथ में मुद्गर है।
स्वतन्त्रतन्त्र के भगवती वग्लामुखीके प्रादुर्भावकी कथा इस प्रकार है- सत्ययुग में सम्पूर्ण जगत् को नष्ट करने वाला भयंकर तूफ़ान आया। यूक्रेन के जीवन पर आये संकटको देखकर भगवान महाविष्णु चिन्तित हो गये। वे सूर्याष्ट देश में हरिद्रा झील के किनारे झील भगवान भगवती को प्रसन्न करने के लिए तप करने लगे। श्रीविद्याने ने कहा कि समुद्र तट से बगलामुखी रूप में प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिया गया और विध्वंसकारी तूफान का शिला स्तंभ बनाया गया। वगलामुखी महाविद्या भगवान विष्णुके तेजसे युक्त होने के कारण वैष्णवी हैं। मंगलवार को चतुर्दशीकी अर्धरात्रि में इसकी प्रादुर्भाव हुआ था। इस विद्या का उपयोग दैवी प्रकोप की शांति, धन- धान्यके के लिए नामांकित कर्म एवं अभिचारिक कर्म के लिए भी होता है। यह भेद केवल प्रधानताके अभिप्रायसे है; अन्यथा धार्मिक अनुष्ठान और मोक्ष दोनों की सिद्धि मिलती है।
यजुर्वेदकी कथकसंहिताके दसों दिशाओं को प्रकाशित करनेवाली, सुंदर स्वरूपधारिणी 'विष्णुपत्नी त्रिलोक जगत्की ईश्वरी मनोता कही जाती है। स्तंभकारिणी शक्ति व्यक्ति और अव्यक्त सभी मादक द्रव्यों की स्थिति का आधार पृथ्वीरूपा शक्ति है। वगला एक ही स्तम्भनशक्तिकी अधिष्ठात्री देवी है। शक्तिरूपा वाग्लाकी स्तम्भन शक्तिसे द्युलोक वष्टि प्रदान करती है। वही आदित्यमंडल का विधान है और वही स्वर्ग लोक भी स्तम्भित है। भगवान श्रीकृष्णने भी गीतामें 'विष्टभ्यहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत्' उसी शक्तिका का समर्थन किया गया है। तन्त्र में वही स्तम्भनशक्ति वागलामुखीके नाम से जानी जाती है।
श्रीवग्लामुखी को 'ब्रह्मास्त्र' के नाम से भी जाना जाता है। ऐहिक या पारलौकिक देश या समाज में दुःख, अरिष्टोंके दमन और शत्रुओंके शमनमें बगलामुखीके समान कोई मंत्र नहीं है। चिरकालसे साधु साध्य महादेविका आश्रय लेते आ रहे हैं। इनमें बडवामुखी, जातवेदमुखी, उल्कामुखी, विद्वत तथा बृहद्भानुमुखी पांच मंत्रभेद हैं। कुंडिकातंत्र में वग्लामुखीके जपके विधान में विशेष प्रकाश डाला गया है। मुंडमाला तंत्र में तो यहां बताया गया है कि उपयोगी सिद्धिके लिए नक्षत्रादि विचार और कालशोधनकी की भी आवश्यकता नहीं है।
वगला महाविद्या ऊर्ध्वामनायके अनुसार ही उपाय है। इस आम्नायमें शक्ति केवल पूज्य मानी जाती है, भोग्य नहीं। श्रीकुल की सभी महाविद्याओं की आराधना में गुरुके सान्निध्य में विलम्ब से सफलता की प्राप्ति तक की जाती है। इसमें ब्रह्मचर्यपालन एवं बाह्य- भीतरकी पवित्रता अनिवार्य है। प्रथम ब्रह्माजीने वगला महाविद्याकी आराधना की थी। ब्रह्माजीने इस विद्याका उपदेश सनकादिक मुनियोंको किया। सनत्कुमारने देवर्षि नारदको और नारदने सांख्यान नामक परमहंसको ने उपदेश दिया। सांख्ययन्ने छत्तीस पटलोंमें उपनिबद्ध वगलातन्त्रकी रचना की। बगलामुखी के दूसरे उपासक भगवान विष्णु और तीसरे उपासक भगवान विष्णु के और तीसरे उपासक परशुराम के ये विद्या आचार्य द्रोणकोयी बताते हैं।